महानदी पैरी अउ सोढुर तीनो के मिलन इस्थान म लगथे राजिम मेला

तीन नदी के बने पुनय संगम इस्थल राजिम दाई के धाम ह महानदी पैरी अउ सोढुर नदी छत्तीसगढ़ के तीरथ इस्थान कहाथे। जेमा हर बछर माघी पुन्नी म कुलेश्वर महादेव के मंदिर मेर महाशिवरातरी के बेरा म बड़का मेला भराथे। जेन ह अभी के आने वाला समय म कुंभ के बड़का रूप धर ले हे। ये मेला ह हर बछर महाकुम्भ के नाव ले भराथे, अउ पूरा छत्तीसगढ़ म परसीध हे। जेमा देवी गंगा के आरती के बरोबर दाई महानदी के आरती करथे, येखर पूजा करथे, जेखर पूरा वयवसथा सांस्कृतिक विभाग अउ अस-पास के जन परतीनिधि मन करथे। राजिम म तीन नदी के मिलन के कारन येला समागम इस्थल कथे, अउ इँहा ले दुरिहा-दुरिहा ल संत साधु मन धुरी लगाए बर राजिम पहुँचथे। दस दिन के लगने वाला राजिम कुंभ के मेला म पूरा राजिम नगर अउ अस-पास के इस्थल म बजार हाट के रौनक देखे ल मिलथे। कुंभ इस्नान कर के मेला घूमे के बाजार हाट म कुछु कही समान खरीदे के आनद घलोक आम मनखे मन उठा सकथे।



कुंभ के सुरु होये के कुछ दिन पहली ले मनखे अउ साधु-संत मन महादेव के पांचों रूप के यात्रा सुरु कर देथे, जेमा पटेश्वर नाथ फिंगेस्वर नाथ ब्रहमेश्वर नाथ कोपेश्वर नाथ अउ चम्पेश्वर नाथ के दरसन बर जाथे अउ अब्बड़ दुरिहा रेंगे के बाद साधु-संत मन राजिम म आ के धुनी रमाथे।

राजिम कुंभ के सुरुवात मन्घि पुन्नी म होथे, मन्घि पुन्नी के बेरा कुम्भ म इस्नान करे ल दुरिहा-दुरिहा ले साधु-संत नाग बाबा मन आथे, कइ मनखे मन तो इहा अवइया साधु-संत मन ल देखे बर दुरिहा दुरिहा ले आथे, अउ कई मनखे मन मानथे की जब तक राजिम म राजीवलोचन के दरसन नइ कराये तब तक जगरनाथ पूरी के दरसन घलोक अधूरा रहिथे। इहा बसे कुलेसवर महादेव तीनो नदिया के मिले के जगहा म हवाय जेखर अपन अलग महत्व हे। राजिम म बने राजीवलोचन मंदिर के कारन इहा पूरा आबादी निवास करथे बछर के संगे संग राजिम के मेला म बदलाव देखे बर मिले हे येही मेला ह अब अतेक बछर के बाद कुम्भ के आकार ले लेहे। जो पूरा छत्तीसगढ़ म परषिद हे।

इलाहाबाद म तीन नदी के संगम के समान इहा भी तीन नदी के मिलन हे कइ के येला छत्तीसगढ़ के प्रयाग कथे, जेमा ले मन ल पवित्र करने वाला इस्थल इलाहाबाद के समान येहि इस्थान छत्तीसगढ़ के राजिम म हे।

इलाहाबाद के तीनों नदी के मिलन म सरस्वती नदी ह लुकाये हे, फेर राजिम के तीनों नदी के मिलन म तीनो नदिया मन दिखाई देथे। राजिम मेला के आकार ल बदल के कुम्भ के आकार दिए गे हे तेखर सेती कुम्भ के नाव ले नदिया के कोई उद्धार नाइ होत हे नदिया ल मुरुम म पाट के कुम्भ के मेला भराये जाथे जोन ह नदी के गती ल बिगाड़त हे।



राजिम छेत्र अउ ओखर नाव के पीछू एक परसीद कहानी सुने ल मिलथे राजिम के पुजारी के बताये के अनुसार राजिम ल पहली पदमावती के नाव ले जाने, जीह अब्बड़ रक्सा मन रहय अउ राजा के करे याग म बाधा डाले, जेखर ले राजा हताश हो के भगवान विष्णु के उपासना करें लागिस अउ ओला धरती म आ के रक्सा मन ले छुटकारा दिलाये बर बुलाये लागिस, ओतने समय ग्रह अउ गजेंद्र म घलोक लड़ाई चलत  रहिस हे, अउ गजेंद्र ह भगवान विसनु ल अपन सहायता बर बुलात रहिस तभे भगवान विसनु ह जइसने रहिस हे तइसने म खाली पाव उहा पहुच गिस अउ गजेंद्र के रक्छा करिस गजेंद्र ल छुड़वा के भगवान विसनु जब वापस अपन धाम जात रहिस हे तभे उखर कान म राजा के पुकारे के आवाज पढ़ीस राजा के आवाज सुन के भगवान ओखर पास पहुचीस अउ राजा ल रक्सा ले बचा के राजा ल वरदान दिस के मैं जइसने रूप म हव वइसने रूप म तोर राज म निवास करहु अउ भगवान विसनु वइसने रूप म उहा विराज मान होंगे।

कहे बर कइथे की भगवान विश्वकर्मा अपन हांथ ले राजीव लोचन म विसनु जी के मूर्ति ल बनाये हे। राजिम लोचन म एक अउ बड़े खास बात हे कि इहा के पुजारी मन जनेव धारी छतरीय हे, अउ उही मन इहा के पूजा पाठ करते, पंडितो मन भी इहा पूजा करते लेकिन इहा के असली पुजारी छतरीय मन ल माने जाथे, जो परम्परा ह बहुत पुराना चले आत हे।

अभी के बेर म राजिम नदी के स्वरूप ह गवांत जात हे, नदी म जल अउ रेती के बादल मुरुम चारो कोती दिखाई देता हे जेखर ले आने वाला बछर म नदी बने नई रही पाही।

चढ़हे कुमुदनी जेमा, सुते सर्प के आंग में,
धन्य देवी चरन पखारे, अउ दूर होये कस्ट नाव ले।
अइसे जानव प्रभु ल, राजीव लोचन नाव के।

अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़।
प्रशिक्षण अधिकारी आई टी आई मगरलोड धमतारी।
मो.न.-7722906664,7987766416
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ये आलेख म आन रंग के शब्‍द (सबद) मन ल थोकन गुनहू संगी मन ह। युवा साहित्‍यकार ह हिन्‍दी शब्‍द के कोनों-कोनो जघा बरपेली ठेठ छत्‍तीसगढ़ीकरण करथे, जबकि वोला हिन्‍दी म ही लिखना उचित हे। अचरज तब अउ होथे जब उमन कोनो जघा हिन्‍दी शब्‍द ल जइसे के तइसे बउरथे। दूनों कोती रेंगई संपादक के अनुसार उचित नइ हे। – संपादक

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